Importance of numerology and its truthfulness – अंक शास्त्र वर्तमान युग की श्रेष्ठतम उपलब्धि है। प्रत्येक व्यक्ति इसके द्वारा अपने भूत-भविष्य पर दृष्टि डाल सकता है और तदानुकूल स्वयं को ढालकर अपना जीवन सुखी, समृद्ध और सफल बना सकता है। इस शास्त्र का प्रचलन आदिकाल से ही है। तभी तो भारतीय ऋषियों ने अंकों का महत्त्व ज्ञात करके प्रत्येक कार्य-सिद्धि हेतु भिन्न-भिन्न संख्या युक्त मणियों की माला जपने का विधान रचा- 25 मणियों की माला जपने से – मोक्ष प्राप्ति 27 मणियों की माला जपने से – स्वार्थ सिद्धि 30 मणियों की माला जपने से – धन सिद्धि 54 मणियों की माला जपने से – प्रेमिका प्राप्ति 108 मणियों की माला जपने से – सर्वकार्य सिद्धि
सर्वकार्य सिद्धि हेतु 108 मणियों की माला जपने की व्यवस्था क्यों है? इसके पीछे कोई तार्किक तथ्य है या नहीं ?
हां इस तथ्य के पीछे वैज्ञानिक आधार है। इस आधार को जानकर ऋषियों की अभूतपूर्व साधना एवं ज्ञान के सम्मुख स्वतः ही मस्तक झुक जाता है। उन्होंने काल-गणना के रहस्य को जानकर ही सूर्य को जीवन के मूलाधार के रूप में जाना। सूर्य एक माह में एक खगोलीय वृत्त(360°) पूर्ण कर लेता है जिसकी 21600 कलाएं होती हैं। सूर्य छह महीने उत्तरायण में तथा छह महीने दक्षिणायन में रहता है। फलतः एक वर्ष में दो अयन होने से एक अयन का सार 21600÷2=10800 सिद्ध होता है। गणितीय पद्धति से शेष शून्यों को त्याज्य दें तो शुद्ध संख्या 108 शेष रहती है। इसलिए ऋषियों ने 108 मणियों की माला जपने का विधान करके यह निर्देश दिया-‘जब सूर्य उत्तर अयन में हो तो सत्य विधि के अनुसार और जब दक्षिण अयन में हो तो अपसत्य रीति से माला जपनी चाहिए।’
हमारे ऋषि-मुनियों ने तो शब्द, काल और संख्यादि सभी का इस प्रकार सामंजस्य किया था कि प्रत्येक नाम के अक्षरों के संख्या पिंड बनाकर उससे उसके सब गुण प्रकट हो जाते हैं। आज जिस प्रकार वैज्ञानिक भोज्य पदार्थों को कैलोरी (ऊर्जा का मात्रक) में परिवर्तित करके यह बताते हैं कि किस भोजन में कितनी शक्ति है, उसी प्रकार अंक-शास्त्री किसी नाम को संख्या में परिवर्तित करके उसका चारित्रिक विश्लेषण करके यह बताता है कि अमुक नाम का व्यक्ति अमुक से शक्तिशाली है। मूलतः प्रत्येक व्यक्ति का नाम उसका अपना प्रतीक है। अनादि काल से ही नाम और उसकी प्रतीक संख्या फलादेश में प्रयुक्त हो रही है। विद्वानों के मतानुसार सोया हुआ व्यक्ति जिस नाम के स्वर से जाग जाए उसी से उसका विचार करना चाहिए।
हमारे दैनिक जीवन में संख्या का विशेष महत्त्व है। लगभग सभी कार्य संख्या (अंक) से सम्बन्धित है। दिन, मास, वर्ष, घन्टे, मिनट और लेन-देन के अतिरिक्त हमारे समस्त कार्य अंक से किसी न किसी रूप में प्रभावित होते हैं। आज द्वादशी (12) का व्रत रखना है तो कल एकादशी (11) का व्रत रखा था। तीन (3) दिन पहले अमुक से मिला था। चार (4) रुपए उसे देने हैं। वस्तुतः समस्त कार्य किसी न किसी रूप में अंक से सम्बन्धित होते हैं ।
शब्द ब्रह्म का रूप होता है किन्तु भिन्न-भिन्न शब्दों का गुण और प्रभाव अलग-अलग होता है। कोई शब्द १००० आवृत्ति करने पर पूर्णता को प्राप्त होता है तो कोई 16000 बार आवृत्ति करने पर । शब्द और संख्या के रहस्य से हमारे ऋषि-मुनि पूर्णतया परिचित थे,
तभी उन्होंने प्रत्येक ग्रह के लिए मन्त्र जप-संख्या अलग-अलग इस प्रकार निर्धारित की है-
सूर्य ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 7,000
चन्द्र ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 11,000
मंगल ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 10,000
बुध ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 9,000
गुरु ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 19,000
शुक्र ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 16,000
शनि ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 23,000
राहु ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 18,000
केतु ग्रह के लिए मन्त्र की जप-संख्या 17,000
आपने रेडियो देखा होगा उस पर बने मीटर प्ले पर अलग- अलग संख्या निर्धारित की जाती है। यह संख्या अलग-अलग रेडियो स्टेशन की प्रतीक है। आप रेडियो चलाते समय सुई को जिस संख्या पर स्थिर करते हैं उसी स्टेशन द्वारा प्रसारित कार्यक्रम सुनाई देने लगते हैं। इसी प्रकार अलग-अलग व्यक्ति का भिन्न टेलीफोन नं० होता है आप जिस व्यक्ति से बात करना चाहते हैं। डायल पर उसका फोन नं० मिलाकर बात कर सकते हैं।
संख्या की महत्ता के कारण ही सूर्यादि ग्रहों के दशा वर्ष भिन्न- भिन्न स्वीकार किए गए, जैसे-
सूर्य 7 वर्ष
चन्द्र 10वर्ष
मंगल 07वर्ष
बुध 17वर्ष
गुरु 16 वर्ष
शुक्र 20वर्ष
शनि 19वर्ष
राहु 18वर्ष
केतु 7वर्ष