Definition and Development of Numerology
अंक-शास्त्र अंकों का विज्ञान है जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि वह शास्त्र है जिसमें अंकों का भिन्न-भिन्न प्रकार से अध्ययन मानव जीवन पर अंकों का प्रभाव एवं उसकी व्यावहारिक उपयोगिता को ध्यान में रखकर करते हैं। इसका अंकगणित की शाखा सांख्यिकी से सह-सम्बन्ध
(Co-relation) है।
जिस प्रकार सांख्यिकी में एक महत्त्वपूर्ण नियम की प्रमाणिकता के लिए विभिन्न आंकड़े एकत्र करके उनके विश्लेषण के उपरान्त ही किसी स्थिर परिणाम पर पहुंचा जाता है उसी प्रकार अंक-शास्त्र में अंकों के गुण-दोषों और शक्ति के आधार पर किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं। इस प्रक्रिया में जातक के जीवन सम्बन्धी आंकड़ों (जन्मतिथि, जन्म समय, पारिवारिक स्थिति आदि) को आधार बनाकर अंकों द्वारा वर्तमान, भूत और भविष्य का विश्लेषण करके फलादेश करते हैं। अंक शास्त्र एक विशिष्ट क्रम का शास्त्र है। ऐसा क्यों है? इसका उत्तर यही है- क्योंकि प्रकृति अपने समस्त कार्य एक निश्चित समय और क्रम से पूर्ण करती है।
यह सब एक चक्र के रूप में बंधा हुआ है। जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है और पुनः मृत्यु के बाद जन्म। छह ऋतुएं भी एक चक्र के रूप में निरन्तर पुनरावृत्ति करती रहती हैं। अतः स्पष्ट है कि प्रकृति के समस्त कार्य पूर्व निर्धारित क्रमानुसार हो रहे हैं। इस तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण आप अपने जीवन सम्बन्धी विभिन्न घटनाओं का अवलोकन करके पा सकते हैं। यदि हमें एक त्रिभुज के दो कोण ज्ञात हों तो हम तीसरा कोण गणना करके सरलता से जान सकते हैं। लेकिन अनपढ़ या अज्ञानी इस योग्य नहीं है कि वह बता सके कि त्रिभुज का तीसरा कोण क्या है?
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर अंकों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता अंकशास्त्री (Numerologist) जन्मतिथि और गत जीवन के विश्लेषण से जातक की भावी घटनाओं (भविष्य) को जान लेने में सक्षम होता है। जबकि एक साधारण व्यक्ति इस योग्य नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि साधारण व्यक्ति पुनरावृत्ति के नियम और अंकों के विशेष प्रभाव से अनभिज्ञ है।
प्रत्येक कार्य के लिए निर्धारित की गई संख्याओं को देखकर यह आभास होता है कि अंक-शास्त्र भारतीय ऋषि-मुनियों की देन है। किन्तु वर्तमान अंक शास्त्र के विकास को देखकर यह कहना पड़ता है कि उसका जन्म भारत में हआ जबकि विकास पाश्चात्य विद्वानों के संरक्षण में हुआ। कहा जाता है कि सर्वप्रथम चैण्डील्स नामक पाश्चात्य ज्योतिषी ने भारतीय अंक-शास्त्र से प्रभावित होकर उन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर पाश्चात्य अंक-शास्त्र का आविष्कार किया।
अंक- शास्त्रियों ने निज अनुभवों के आधार पर विभिन्न मान्यताओं को प्रतिस्थापित किया। उनकी मान्यताओं में अल्प अन्तर है, परन्तु अन्तिम निष्कर्ष लगभग सबका समान है।
अंक-शास्त्र अनेक पाश्चात्य ज्योर्तिविदों के प्रयासों के फलस्वरूप एक विकसित शास्त्र है और निरन्तर प्रगति पथ पर आरूढ़ है। इसके विकसित प्रारूप का उपयोग भूत, वर्तमान और भविष्य जानने में सर्वमान्य है।
यूनाईटड क्रास (United Cross), सेफरियल (Sepharial), कीरो (Cheiro),मॉनट्रास (Montrose) तथा सन्त जरमिन(Saint Germain) आदि अनेक पाश्चात्य ज्योतिर्विदों ने अपने अंक सम्बन्धी विशेष अध्ययन और अनुभवों को पुस्तक रूप में अभिव्यक्त करके अंक-शास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका तथा अनेक ज्ञात-अज्ञात विद्वानों जिन्होंने इसके विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है, इन सबका नाम तब तक आदर से लिया जाता रहेगा जब तक यह जगत् अमर है।