Shiv Chalisa
दोहा :
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्यादास, तुम देहु अभय वरदान ||
जय गिरिजा पति दीनदयाला |
सदा करत संतन प्रतिपाला ||
भाल चन्द्रमा सोहत नीके |
कानन कुण्डल नागफानी के ||
अंग गौर सिर गंग बहाए |
मुंडमाल तन क्षार लगाए ||
वस्त्र खाल बघम्बर सोहे |
छवि को देख नाग मुनि मोहे ||
मैना मातु की हवे दुलारी |
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ||
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी
करत सदा शत्रुन क्षयकारी
नंदी गणेश सोहे तंह कैसे |
सागर मध्य कमल है जैसे ||
कार्तिक श्याम और गणराऊ |
या छवि को कहि जात न काऊ ||
देवन जबहीं जाय पुकारा |
तब ही दुख प्रभू आप निवारा ||
किया उपद्रव तारक भारी |
देवन सब मिली तुमहीं जुहारि ||
तुरत षडानन आप पठायउ |
लवनिमेष मँह मारि गिरायउ ||
आप जलंधर असुर संहारा |
सुयश तुम्हार विदित संसारा ||
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई |
सबहीं कृपा कर लीन बचाई ||
किया तपहिं भागीरथ भारी |
पूरब प्रतिज्ञा तजु पुरारी ||
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं |
सेवक स्तुति करत सदाहीं ||
वेद नाम महिमा तव गाई |
अकथ अनादि भेद नहीं पाई ||
प्रकटी उदधी मंथन मे ज्वाला |
जरत सुरासूर भए विहाला ||
किन्ही दया तंह करी सहाई |
नीलकंठ तब नाम कहाई ||
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा |
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ||
सहस कमल में हो रहे धारी |
कीन्हा परीक्षा तबहिं पुरारी ||
एक कमल प्रभु राखेउ जोई |
कमल नयन पूजन चहं सोइ ||
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर |
भये प्रसन्न दिए इक्छित वर ||
जय जय जय अनंत अविनाशी |
करत कृपा सब के घटवासी ||
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै |
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो |
यहि अवसर मोहि आन उबारो ||
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो |
सकंट से मोहि आन उबारो ||
मातु पिता भ्राता सब कोई |
संकट में पूछत नहीं कोई ||
स्वामी एक है आस तुम्हारी |
आय हरहु अब सकंट भारी ||
धन निर्धन को देत सदाहीं |
जो कोई जांचे वो फल पांहि ||
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी |
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ||
शकंर हो संकट के नाशन |
मंगल कारण विघ्ण विनाशक ||
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं |
नारद शारद शीश नवावैं ||
नमो नमो जय नमो शिवाय |
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ||
जो यह पाठ करे मन लाइ |
ता पार होत है शम्भू सहाई ||
ऋनिया जो कोई हो अधिकारी |
पाठ करे सो पावन हारी ||
पुत्र हिन कर इक्षा कोई |
निश्चय शिव प्रसाद तोहि होइ ||
पंडित त्रयोदशी को लावे |
ध्यान पूर्वक होम करावे ||
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा |
तन नहीं ताके रहे कलेश ||
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे |
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ||
जन्म जन्म के पाप नसावे |
अन्तवास शिवपुर में पावे ||
कहे अयोध्या आस तुम्हारी |
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ||
दोहा :
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ||
मगसर छठि हेमंत ऋतू, संवत चौसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण ||